मानसिक तनाव और हम
जिंदगी के सफ़र में हर किसी को चुभते हैं कांटे कई,
लहूलुहान हो जाते पांव पर क़दमों को थामता नहीं कोई,
फर्श से अर्श तक पहुंचने के हज़ारों सपने देखते हैं हम यहीं,
और इन्हीं ख्वाबों की राहों में खुद को भूल जाते हैं कभी,
मिलती कुछ कामयाबी तो जमीं पर पैर टिकते नहीं हमारे,
और सामना होता जब असफलता से इसी जमीन पर गिरते सभी,
लगातार देखकर असफलता को मानसिक तनाव के शिकार हो जाते,
बाहर से लगते सभी खुश पर अंदर से सुकून तक न पाते,
बचपन से लेकर अब तक न जाने किया कितने ही तनाव का सामना हमने,
पर हर बार अपने गुस्से को जाहिर न करने में कामयाब हो जाते,
ज़ख्म जब भी नाकामयाबी के कुरेदता कोई बेवजह,
तब अंदर से खुद को कोसते पर उससे कुछ न बोल पाते,
एक दिन या एक पल में कोई शिकार नहीं होता इस तनाव का,
जब तक खुद की अच्छाइयों को छोड़ अपनी कमियों पर जरूरत से ज्यादा ध्यान दे देते,
माना अच्छी बात है खुद ही ध्यान देकर अपनी कमियों में सुधार करना,
पर बोलो क्या यह सही है कि अंदर ही अंदर वेबजह यूं घुट कर मरना,
होते जब परेशान बचपन में तब इसी तनाव खातिर दोस्तों से मिला करते थे,
और जब खुद से हार बैठे हैं तब दोस्तों को कुछ न बताते हैं,
माना समस्या तुम्हारी यह समाधान भी तुम ही निकालोगे,
पर बोलो जिसकी जिंदगी के किरदार तुम उसके किरदार को दांव पर यूं ही कैसे लगा दोगे,
माना बहुत हिम्मत है तुम्हारे में हर दरिया को बेख़ौफ़ पार कर जाओगे,
पर बनाए जो तुमने यार जिंदगी में उन्हें अपने दर्द में शामिल करना कब सीखोगे,
है जिंदगी बहुत छोटी अपने जख्म को नासूर क्यूं बनाते हो,
माना है तुम्हे तनाव बहुत पर अपने अजीज को क्यूं नही बताते हो,
बता कर देखो एक बार उन्हें जिन्हे तुम अपना कुछ मानते हो,
हल न निकले भले ही पर कोई गलत कदम उठने से जरूर रुक जाएगा।