मानव हे तू! भाव यही तू रखना रे!
आत्म बल पर चलना रे।
दलदल में मत फसना रे।
खुशियों में ही खुश रहना छोड़,
मिले गम तो उसमें भी हंसना रे।।
मानव हे तू !
कुदरत की अनुपम रचना रे।
कहीं दबाए दानवता तो,
सदा ही उससे बचना रे।।
मुंह को खोलें जब भी बोले,
बंधु तेरी रसना रे।
मीठे मधुर शब्द ही गूंजे,
स्वयं को इस पे कसना रे।।
सब है तेरे ,न कोई अरे गैरे,
न करना तू तेरे मेरे।
भाव यही तू रखना रे।।
छोड़ना निशानी अपनी
दुनिया तो आनी जानी।
सर्वहित के लिए अनुनय,
कर जीवन भर अर्चना रे।।
राजेश व्यास अनुनय