मानव से जल की बात
विश्व जल दिवस पर एक कविता
जल ने हमको जीवन दिया है
जल पर हमने कैसा किया है यह आघात
यक्ष प्रश्न जल पूछ रहा है
और खड़ा है मौन मानव सुनकर जल की बात
मैंने ही तुमको धरा पर जीवन का वरदान दिया है
तुमने मेरी आशाओं को अपमान का सम्मान दिया है
मेरे भीतर के जीवधारियों के कष्ट में योगदान दिया है
आंखों में तुम्हारे जल हो,जल ने श्राप महान दिया है
जब तक अस्तित्व है मेरा तुम सोच लो
याद रखना चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात
यक्ष प्रश्न जल………..
और खड़ा है……………..
तुम ने अपना सारा अपशिष्ट मुझमें मिलान किया है
प्रदूषण के बाण से मेरा कितना शरसंधान किया है
मेरे मार्ग को बाधित कर मुझे हमेशा परेशान किया है
मेरा अपव्यय कर मेरी उपस्थिति का अपमान किया है
मुझको मिटाकर सोचते हो तुम यही
मैं मिट गया तो देखना,फिर क्या है तुम्हारी औकात?
यक्ष प्रश्न……………..
और खड़ा है……………….
जल ने वसुंधरा के पोषण का पुण्य अभियान लिया है
जल में, जल से जीवन है जल ने यह भी जान लिया है
मानव ने तो केवल अपने स्वार्थ को प्रधान मान लिया है
जल ने मानव से क्रुद्ध होकर अब घमासान ठान लिया है
यदि धरा में जल ना हो तो निर्जल हे निर्लज्ज
मानव की शिक्षा पर अज्ञानता की है यह कुठारी घात
यक्ष प्रश्न……………..
और खड़ा है………………
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.