मानव सेवा ही सच्चा धर्म है…
स्वार्थ और अहंकार से मुक्त होकर औरों के लिए जो कष्ट उठाया जाता है वही सच्चा धर्म है। सच्चे धर्म की अनुभूति व्यक्तिगत स्वार्थ और अहंकार से परे जाकर ही होती है। मात्र स्वयं के स्वार्थोँ की पूर्ति के लिए जीने वाले तो हर जगह मिल जाते हैं ,पर दूसरों की पीड़ाओं को हरने के लिए अपने प्राणों की आहुति लगाने वाले ही सच्चे धर्म के पालक हैं।
कष्ट तो जीवन का पर्याय है। जब जीवन है तो कष्ट होगा ही। परन्तु ऐसा कष्ट जो किसी और के लिए सहा जाता है ,किसी और के जीवन को नयी दिशा देता है ही सच्चा धर्म है। अगर जीवन में हमारी वजह से किसी भी व्यक्ति को हम लाभ पहुंचा सकते हैं तो यही ईश्वर की सच्ची आराधना है ।धर्म तो औरों के लिए स्वयं को मिटा देने का नाम है। धर्म प्रेम का ग्रन्थ है ,फिर घृणा कैसी ,मिथ्याभिमान कैसा। मनुष्य एक ओर तो ईश्वर की पूजा करे ,दूसरी ओर मनुष्य का तिरस्कार करे ,यह बात मनुष्य को महानता के पथ पर अग्रसित नहीं करती है। धर्म होगा तो साहस होगा और साहस होगा तो प्रस्तुत चुनौतियों से डटकर मुकाबला होगा ,प्राणपण से उनका सामना किया जायेगा। साहस होगा तो इस धर्म से कभी भी कदम वापस नहीं खींचे जा सकेंगे,चाहे इसके लिए कितनी भी और कैसी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।
हम मनुष्य से मानव ही बन जाएं और अपने झगड़ों को भुला दें, यही सच्चा धर्म होगा। मानव धर्म ही सभी धर्मों का सार तत्व है। बेशक ईश्वर ने संसार में करोडों जीव जन्तु बनाए ,लेकिन इन्सान सबसे अहम कृति बनाई ।लेकिन ईश्वर की यह कृति पथभ्रष्ट हो रही है ।यदि कोई मानव चारित्रिक या नैतिक आदर्शे में उसकी श्रद्धा नहीं है, ईश्वरीय सत्ता में यदि उसका विश्वास नहीं है, इसके अतिरिक्त सहृदयता, सात्विकता, सरलता आदि सद्गुण उसमें नहीं हैं, तो इस स्थिति में यह स्वीकार करना होगा कि अभी उसने मानव धर्म का स्वर-व्यंजन भी नहीं सीखा है।
कहते हैं दुनिया में कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो इन्सान को गिरा सके ,इन्सान,इन्सान द्वारा ही गिराया जाता है । दुनिया में ऐसा नहीं है कि सभी लोग बुरे हैं ,इस जगत में अच्छे-बुरे लोगों का संतुलन है ।आज संस्कारों का चीरहरण हो रहा है ,खूनी रिश्ते खून बहा रहे हैं ।संस्कृति का विनाश हो रहा है ।दया ,धर्म ,ईमान का नामेानिशान मिट चुका है ।इन्सान खुदगर्ज बनता जा रहा है ।बुराई का सर्वत्र बोलबाला हो रहा है ।आज ईमानदारों को मुख्यधारा सेे हाशिए पर धकेला जा रहा है।गिरगिटों व बेईमानों को गले से लगाया जा रहा है ।आज धर्म के नाम पर लोग लहू -लुहान हो रहे है, आज हम मानवता को एक तरफ रखकर अपनी मनमर्जी अनुसार धर्म को कुछ ओर ही रूप दे रहे है , जिस कारण इंसान ओर इंसान में दूरियां बढ़ रही हैं , कहीं जाति-पाति को मानकर कहीं परमात्मा के नामो को बांटकर तो कभी किसी और कारण से, इन कारणों से दिलो में नफरत बढती जा रही है , इंसानियत खत्म होती जा रही है , जहाँ पर इंसानियत खत्म होती है वहां पर धर्म भी खत्म हो जाता है ,जो डरपोक होते हैं ,कायर होते हैं ,पल पल घबरा उठते हैं ,वे कभी भी धर्म के साथ खड़े नहीं हो सकते। ऐसे लोगों को जब विपरीत परिस्थितियां घेरती हैं ,तो ये समय के सामने बहुत कमजोर नजर आते हैं।
ऐसे लोगों को धार्मिक नाम देना धर्म की निंदा करना है। धर्म रूपी वस्त्रों ओढ़ कर कोई धार्मिक तो दिख सकता है ,पर धार्मिक नहीं हो सकता। तिलक ,गले में माला डालकर वयक्ति धार्मिक होने का ढोंग तो कर सकता है ,पर धार्मिक नहीं बन सकता। मानवता से बड़ा कोई भी जीवन में धर्म नही होता है , मगर इंसान मानवता के धर्म को छोड़कर मानव के बनाये हुए धर्मों पर चल पड़ता है , क्योंकि यह सब उसके अज्ञानता के परिणाम होते है कि इंसान इंसानियत को छोड़कर मानव-धर्मो में जकड़े जाते है , धर्मो की आड़ में अपने मनो के अन्दर वैर , निंदा, नफरत, अविश्वास, जाती-पाति के भेद के कारण अभिमान को प्रथामिकता देता है , इसके कारण ही मानव मूल मकसद को भूल जाता है। इसी कारण हर एक तरफ मानवता का गला दबाया जा रहा है। हर तरफ मानवता जैसे रो रही हो। विश्व का ऐसा कोई कोना नहीं बचा है, जहां हर रोज किसी धर्म के नाम पर राजनीति न हो। हर तरफ ना जाने कितने लाखों लोग बेघर हो रहे है और कितने ही मासूम बच्चे अनाथ हो रहे है। वर्तमान में धार्मिकता से रहित आज की यह शिक्षा मनुष्य को मानवता की ओर ले जाकर दानवता की ओर लिए जा रही है।
मनुष्य का धर्म है कि वह अपने संसाधनों से उस वर्ग की सेवा करे, जो वास्तव में उसके हकदार हैं।भारतीय वेदों ने मानवता को ही सच्चा धर्म माना है I मानवता को खत्म करके कभी भी धर्म कायम नही रह सकता है , मानवता को खत्म करके कभी भी धर्म को नही बचाया जा सकता है I