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16 Jun 2024 · 1 min read

“मानव-धर्म”

मिटे भेद, असमानता,
यही हमारा कर्म।
सर्वहिते, आचार हो,
यही, हमारा थर्म।।

उर में हो सद्भावना,
जीवन का यह मर्म।
शान्त भाव हो वार्ता,
कभी, न होवें गर्म।।

ज्ञान और विज्ञान ही,
है विकास का मन्त्र।
कट्टरता पनपे नहीं,
ऐसा, हो कुछ तन्त्र।।

जात-पाँत खाईं बड़ी,
ऊँच-नीच सब व्यर्थ।
प्रेम शाश्वत सार है,
किँचत, हो न अनर्थ।।

न्याय व्यवस्था हो त्वरित,
अगणित इसमें गर्त।
क्षमादान के शील से,
खुलें, हृदय के पर्त।।

पीड़ित की सेवा प्रथम ,
रखेँ स्वयं को व्यस्त।
वँचित कोई ना रहे,
रहे, न कोई त्रस्त।।

त्याग और बलिदान ही,
है सबको अनुमन्य।
एकलव्य से हो गई,
गुरू-दक्षिणा धन्य।।

ज्ञान और विज्ञान ही
है विकास का मन्त्र।
कट्टरता पनपे नहीं,
ऐसा, हो कुछ तन्त्र।।

शबरी के सत्कार पर,
करें हमेशा गर्व।
हेल-मेल, सौहार्द्र हो,
मनें, इस तरह पर्व।।

यूरोप, भले अमेरिका,
मणिपुर हो या विदर्भ।
वासुधैव कुटुम्बकम्,
उचित, आज सन्दर्भ।।

पलेँ-बढ़ें सुविचार बस,
खाएं मूल अरु कन्द।
“आशा”-दीप जलेँ सदा,
होँ, पुलकित सब वृन्द..!

##————##————##

Language: Hindi
5 Likes · 5 Comments · 89 Views
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