मानव धर्म प्रकाश
मानव धर्म प्रकाश
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सबका मालिक एक है
ईश्वर अल्ला ईस टेक।
गुरू नानक, कबीरा संत
नाना पंत है सब देख।।
सत्य दया प्रेम अहिंसा
परमो धर्म उपकार।
सबसे पहले हम मानव है
यही धर्म है जग सार।।।
मानव धर्म हम सबका
मानवता हमारा फर्ज।
मां,बेटी हम सबका है
कैसे चुकायेंगे कर्ज।।
कोटिन कोटिन है नारी जगत
बुरी नजर न राख।
भेज दिया है इस दुनियां में
तव हिस्सा का भाग।।
खिलें हुये हैं इस दुनिया में
अनगिनत है बाग।
मन मृग को है मारिये
पत्नी से रखें अनुराग।।
मन वहीं है तन वही है
हाड़ मांस अरू चाम।
मन मृग पागल किया
आत्मा नंद का धाम।।
कवि विजय तो लिख दिया
मानव धर्म प्रकाश।
आतंकवादी कोई धर्म नही
हर नारी की आश।।
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग