मानव तेरी जय
खूब तरक्की कर ली हमने , खूब ज्ञान संग्रह
मानव तेरी जय जय है ओ मानव तेरी जय जय है
पैर रख दिए चांद पर जाकर, खोजा जल मंगल ग्रह
मानव तेरी जय जय है ओ मानव तेरी जय जय है
पहिए से बढ चली जिन्दगी, आग को काबू किया
खूंखार जंगली जानवर को भी आगे नतमस्तक किया
तुफानो झंझावातो से लडकर पाई विजय
मानव तेरी जय जय है ओ मानव तेरी जय जय है
धास की झोपडियो से शुरू हो अट्टालिका बना दिया
पत्तल-छालो को तज कर कपडे का अंबार लगा दिया
खेती कर भोजन को कितना सुलभ बना दिया
मानव तेरी जय जय है ओ मानव तेरी जय जय है
विकसित होती सदा है जाती पढने की लिपी
ज्ञान की गंगा बढ़ती जाती पीढी दर पीढ़ी
सभ्य होती जाती मानवता , परे हो रहे भय
मानव तेरी जय जय है ओ मानव तेरी जय जय है
अमीर गरीब की कम हो दूरी, हो इसका निवारण
है सौगात यह तरक्की और लालच के कारण
इस दूरी को दूर करके हम पा जाए विजय
मानव तेरी जय जय है ओ मानव तेरी जय जय है
संदीप पांडे “शिष्य”