मानव जीवन की बन यह पहचान
मानव जीवन की बन यह पहचान
अधिकारों से बनी यह अनजान
मौका मिला उसे पूर्ण सहभागिता का
हाथ जोड़ने का मजबूर हुए अपनी ही
प्रतियोगिता का
चरम सीमा सुखी बन जरिया लोकतन्त्र की
आवाज बनी शासन मानव मन
पांच साल का आया मोका
पता चला कैसे खाया धोखा
उठे वादो पर यू ना अम्ल होता
चन्द लालची चोपलूसो का’ ना पंथ खत्म होता
चरम सीमा का सुखी शासन मानव मन का बन
जरिया लोकतन्त्र की आवाज बनी
कम नहीं है हम भी भाई नोटों की चमक से खुशी आई
इमान अपना रख चापलुसी की हो रही अब पैरवी की
चरम सीमा का मुखी शासन मानव
मन की यू आवाज बनी
आंखो ने बांधा काला कपड़ा
देख भूल गये सारा लपड़ा
नोटो की चोट का झगड़ा अब जारी था।
मानव मन में बुराई की तगडी अब महामारी थी