**** मानव जन धरती पर खेल खिलौना ****
**** मानव जन धरती पर खेल खिलौना ****
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माटी में है जन्म लिया माटी में ही मिल जाना।
पलभर में है बुझ जाना पलभर में खिल जाना।
मानव जन तो धरती पर जैसे हो खेल-खिलौना,
जीवन तेरा ऐसे बन्दे जैसे भू पर बिछा बिछोना,
माटी में ही खेल – खेल कर माटी में घुल जाना।
माटी में है जन्म लिया माटी में ही मिल जाना।
रेत का खाली ढेर है बंदा झट में ही ढह जाए,
सागर की लहरों के संग पल में वो बह जाए,
किस का तू है मान करे यहीं पर ही रह जाना।
माटी में है जन्म लिया माटी में ही मिल जाना।
मृत्तिका बन तन पर लिपटे पल में मार गिराए,
मृण की कीमत धूल बने राह में झाड़ बिछाए,
मन की पीड़ा कोई न समझे मूर्ख ना सियाना।
माटी में है जन्म लिया माटी में ही मिल जाना।
मनसीरत मिट्टी का पुतला मिट्टी में शूल समाए,
मिट्टी से कभी दूर न भागे सभी को धूल चटाए,
मिट्टी से मिट्टी में मिल कर मिट्टी में घुल जाना।
माटी में है जन्म लिया माटी में ही मिल जाना।
माटी में है जन्म लिया माटी में ही मिल जाना।
पलभर में है बुझ जाना पलभर में खिल जाना।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)