मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है
मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है
मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है
तड़पती ये साँसें बेवफ़ा हो रही हैं
सिसकती जीवित आत्माएं हजारों आंसू रो रही हैं
एक वायरस से जिंदगियां फ़ना हो रही हैं
मूक हैं सत्ता के ठेकेदार, क्या बताएं
तिल – तिल कर जिंदगियां तबाह हो रही हैं
सत्ता के गलियारे में , चुनाव की हलचल है
नेताओं की आँखें , कुर्सियों पर टिकी हुई हैं
कहीं माँ रो रही है, कहीं भाई रो रहा है
कही बाप अपने बेटे की अर्थी , काँधे पे ढो रहा है
मानवता सिसक रही है , इंसानियत रो रही है
रोजगार फना हो रहे हैं , रसोई तड़प रही है
जवाँ खून कोरोना की बलि चढ़ रहे है
ऑक्सीजन और दवाई के अभाव में मर रहे हैं
कुछ हैं जो अस्पतालों में जगह को तरस रहे हैं
कुछ हैं जो अपनी लापरवाही से मर रहे हैं