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30 Apr 2021 · 1 min read

मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है

मानव की कैसी ये दुर्दशा हो रही है
तड़पती ये साँसें बेवफ़ा हो रही हैं

सिसकती जीवित आत्माएं हजारों आंसू रो रही हैं
एक वायरस से जिंदगियां फ़ना हो रही हैं

मूक हैं सत्ता के ठेकेदार, क्या बताएं
तिल – तिल कर जिंदगियां तबाह हो रही हैं

सत्ता के गलियारे में , चुनाव की हलचल है
नेताओं की आँखें , कुर्सियों पर टिकी हुई हैं

कहीं माँ रो रही है, कहीं भाई रो रहा है
कही बाप अपने बेटे की अर्थी , काँधे पे ढो रहा है

मानवता सिसक रही है , इंसानियत रो रही है
रोजगार फना हो रहे हैं , रसोई तड़प रही है

जवाँ खून कोरोना की बलि चढ़ रहे है
ऑक्सीजन और दवाई के अभाव में मर रहे हैं

कुछ हैं जो अस्पतालों में जगह को तरस रहे हैं
कुछ हैं जो अपनी लापरवाही से मर रहे हैं

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 203 Views
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Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
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