मानव का अधिकार
कितना भी धमकाइए, ……चाहे लें पुचकार ।
इच्छाओं पर कब रहा,किसका भी अधिकार ।।
दिखे राह पर जुर्म की, ऐसे शख्स तमाम।
इच्छाओं की डोर को, रखा न जिसने थाम ।
रणेश शर्मा.
कितना भी धमकाइए, ……चाहे लें पुचकार ।
इच्छाओं पर कब रहा,किसका भी अधिकार ।।
दिखे राह पर जुर्म की, ऐसे शख्स तमाम।
इच्छाओं की डोर को, रखा न जिसने थाम ।
रणेश शर्मा.