मानव आज कितना सिमट गया है —आर के रस्तोगी
मानव आज कितना सिमट गया है |
केवल वह मोबाइल से चिपट गया है ||
उसे फुर्सत नहीं है किसी से मिलने की |
उसे फुर्सत नहीं है किसी को सुनने की ||
वह तो अपने आप में कही खो गया है |
मानव आज कितना सिमट गया है ||
न रही फुर्सत उसे अपने खाने पीने की |
न रही फुर्सत उसे अपने मरने जीने की ||
वह तो अब होटलों में खाने पीने लगा है |
वह तो अस्पतालों में मरने जीने लगा है ||
हर चीज को पाने में आप में खो गया है |
मानव आज कितना सिमट गया है ||
खुशियों को पाने के लिये दुखो में खो गया है |
उजाले को पाने के लिये अंधेरो में खो गया है ||
निमंत्रण पत्र भी व्हाट्सएप्प पर आने लगे है |
इनके गिफ्ट भी व्हाट्सएप्प पर जाने लगी है ||
जीवन का दौर खतरनाक मोड़ पर आ गया है |
मानव आज कितना सिमट गया है ||
कहने को संसार मोबाइल में सिमट गया है |
पर मोबाइल भी हर पाकिट में चिपट गया है ||
सुबह शाम की नमस्ते मोबाइल पर होने लगी है |
जन्म दिवस की बधाई मोबाइल पर होने लगी है ||
अब तो केक भी मोबाइल पर कट कर आ गया है |
मानव आज कितना सिमट गया है ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425