*मानवीय कर्तव्य *
डा. अरुण कुमार शास्त्री / एक अबोध बालक / अरुण अतृप्त
मानवीय कर्तव्य
इश्क और आशिकी को हमें अब मिलाना चाहिए
परचम मोहब्बत का आसमान में लहराना चाहिए //
सूख रहे हैं वन, उपवन और सभी ऐतिहासिक चमन
कोई फरमान तरतीब से मुल्क में लगाना चाहिए //
वो तुमसे खफ़ा है और हम से भी नाराज़ सा लगता है
दर्द उसका आगे बढ के हमें मामूल पर ले आना चाहिए //
चोट लगती है आपसी रिश्तों में तभी बगावत होती है
एहसास को अब समझदारी का वस्त्र पहनाना चाहिए //
उठ कर कोई मज्लूम मिरी महफिल से आखिर जाए क्युं
बात समझो तो वक्त रह्ते हमें उसको अपना लेना चाहिए //
तोड़ कर संकीर्णता की बेडीयाँ कुछ ही लोग निकल पाते हैं
बुला कर लाइए ऐसे लोंगों को हमें उनका सम्मान करना चाहिए //
इश्क और आशिकी को हमें अब मिलाना चाहिए
परचम मोहब्बत का आसमान में लहराना चाहिए //
सूख रहे हैं वन, उपवन और सभी ऐतिहासिक चमन
कोई फरमान तरतीब से मुल्क में लगाना चाहिए //
एक कोशिश ही तो है इस अबोध बालक की छोटी सी चमन में
आइए इस यज्ञ में हम सबको उसका हाँथ बटाना चाहिए //