मानवता
हमें आपस में मिलकर रहना है।
नहीं बेकार में ही हमें दहना है।
जिंदगी चार दिन मिली हमको
इसको यूँ बेकार नहीं करना है।
हम सभी एक हैं बस इसे माने
हमको आपस में नहीं लड़ना है।
धर्म सब एक ही पथ के पथिक
इनको बस साथ साथ रखना है।
बाँटा है भगवान को बहुरूपों में
रूप तो बस एक मगर रहना है।
सुन्दर -सी दुनिया है सँवारें इसे
कलह का जाल नहीं बुनना है।
दिखायें राह आने वाले कल को
हमको बस सत्यपथ ही चुनना है।
बंद आँखों से कब चलती दुनिया
हमको इतिहास यह बदलना है।
मानवता ही धर्म हो सारे जगका
इक यही पंथ सबको गहना है।
आँख के आँसुओं को पोंछे हम
नीर नयनों में नहीं हमें भरना है।
बने बगिया ये खिलते फूलों की
जगत सारा ये ऐसे ही सजना है।
हम हैं मानव रहें मिलकर सभी
हम सभी एक हैं यही कहना है।
डाॅ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली