मानवता
मानव जन्म मिला है हमको, मानवता अपनाना है।
देवों को दुर्लभ काया से, कुछ तो लाभ उठाना है।
जो है जग में दीन-हीन अति,दुख से हो जिसका नाता ।
दुखी,पतित,पीड़ित,अनाथ है, जिन्हें न हो कोई त्राता ।
जो रोते हैं उन्हें हँसा कर, सबपर प्रेम लुटाना है।
मानव जन्म मिला है हमको, मानवता अपनाना है।
आलस, जड़ता, निष्क्रियता नित, जहाँ लगाता डेरा हो।
जहाँ निराशा उदासीनता,दिखता गहन अँधेरा हो।
वहाँ ज्ञान का दीप जलाकर, नव प्रकाश फैलाना है।
मानव जन्म मिला है हमको, मानवता अपनाना है।
कलुषित मन के कुत्सित ‘डेरा’, कलुष विचार घृणा-सा है।
मानवता के बिन यह जीवन, केवल मृग -तृष्णा-सा है।
सारा जग आनंद मगन हो, ऐसा राग सुनाना है।
मानव जन्म मिला है हमको, मानवता अपनाना है।
तेरा मेरा अब क्यों करना, यहाँ नहीं कुछ मेरा है।
छोड़-छाड़ सब चलना होगा, दुनिया रैन बसेरा है।
यौवन,मादक बेहोशी में,हमें नहीं इतराना है।
मानव जन्म मिला है हमको, मानवता अपनाना है।
जो करुणा, ममता, सेवा का, श्रेष्ठ कर्म अपनाया है।
जिसने मानवता अपनाई,प्रभु का दर्शन पाया है।
सेवामय जीवन जीना है,सारे फंद मिटाना है।
मानव जन्म मिला है हमको, मानवता अपनाना है।
-लक्ष्मी सिंह