मानवता
मानव होकर हम मानवता भूले ,
यह जाकर हम किसको बोले ।
,प्रतिस्पर्धा की दौड़ में मची हुई एक होड़ ,
स्वार्थ बस हम ना जाने किस-किस को पीछे छोड़े,
यह जाकर हम किसको बोले ।
संस्कृति व संस्कार सब बन बैठे बेकार ,
फूहड़ संस्कृति अपना कर, नए-नए नियम बनाकर मर्यादा का फर्क मिटा कर ,
क्या बुढ़े , क्या बच्चे सब एक संग ही डोले।
यह जाकर हम किसको बोले।
आचार विचार को दूषित कर ,ना जाने कौन-कौन से मार्ग चुनकर, पद नाम व पैसा सब खूब कमा डालें,
राज भला वो ये कैसे खोलें, यह जाकर हम किसको बोले।
प्यार अपनापन सब छूट गए, रिश्तो का सम्मान करना सब भूल गए ,कौन यहां अब शब्दों को तोले , यह जाकर हम किसको बोले। हिंसा का मार्ग अपनाकर मानव पशु का भेद मिटाकर,
आचरण अपने ऐसे कर डाले ,ये पशु है या मानव सोच मे डाले,
यह जाकर हम किसको बोले ,यह जाकर हम किसको बोले