मानवता
आज फिर मानवता को जिंदा जला दिया ,
नफरतों की आग ने सब कुछ जला दिया ।
अपने ही आशियाने टुकड़ों में यूं ना बाँटो,
मेरे ही अंश सब ने क्यों है भुला दिया ।
अमन ओ शांति के दुश्मन वो दानव ,
सदियों की मेहनत को राख बना दिया ।
भाई -भाई बैरी हुए बना खून ही दलदल,
प्यार के पौधों को बेमौत सुला दिया।
उठो बढ़ो कदम -कदम ना पालो रंजिशें,
मुकाम नहीं दरिंदगी क्या हाल बना लिया ।
पछताओगे गर कोई करेगा तंज,
धरा के प्यार का क्या सिला दिया।
अरुणा डोगरा शर्मा,
मोहाली
पंजाब।