मानवता
मन के सुंदर उपवन में खिलती और प्रेम से सिंचित होती ,
अभिलाषाओं और आकांक्षाओं से परे उपजती ,
कभी ना बँधती जाति धर्म के बंधन में जो ,
रखती अपना अस्तित्व स्वतंत्र जो ,
सब कुछ मिट जाने पर भी अक्षुण्ण रहती जो ,
चाहे हो निर्मम वार द्वेष कलेष और अत्याचार के ,
फिर भी वह निर्मल सेवारत इस विचार से ,
बढ्ना है इस दुर्गम पथ पर जूझकर समय के
झँझावातो से ,
लिये धैर्य की पतवार जीवन नैया पार लगाना है बचाकर नियति के चक्रवातों से ,
त्याग स्वार्थ करना होगा सार्थक अमूल्य जन्म
मानव का ,
उत्पेरित कर सदभाव जनमानस में करना होगा नाश
छिपे दानव का।