मानवता मानव का
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तन से मानव,मन से मानव।
आप नहीं क्या प्रण से मानव?
मानवता दिखलाना पड़ता।
दु:ख में साथ निभाना पड़ता।
मानवता की कुछ शर्तें हैं।
घृणा,द्वेष गहरी गर्ते हैं।
उनसे उठकर आना पड़ता।
तोड़-ताड़कर सारी जड़ता,
अपना हाथ बढ़ाना पड़ता।
मानव मन में उथल-पुथल है।
स्वारथी दानव का जंगल है।
फिसलन से तर सारे रस्ते।
अहंकार से चुपड़े-चुपड़े।
उसपर आगे बढ़ना पड़ता।
कठिनाई हर सहना पड़ता।
मानवता तब विजयी होता।
मानव तब जा ईश्वर बनता।
मानवता में संस्कृति होना है।
संस्कार में व मानवता।
प्राणी को मानव होना है।
उसे त्यागनी है दानवता।
अपना दु:ख खुद पीना पड़ता।
यूँ मानवता जीना पड़ता।
यूँ मानवता जीना पड़ता।
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अरुण कुमार प्रसाद