*** मानवता की मौत ***
आद्रो हुआ है जबसे अपरा
अवनि पर बुरी प्रमिति का
जन्म हुआ भयसी दुस्तर मार्गों का
हुआ मानव
जुदा-जुदा फिरकों में विभक्त
समित पृथ्वी पर छा गया विषाद
जबसे मानव दानव बना धरती पर
समरसता की भावना नहीं रही अब उसमें
न रही ज़ाफ़रान सी खुशबू अवनि पर
न रही सलिल वाणी सज्जनों की
संसृति पर छा गया घन-तिमिर
मानवता की मौत करके
मानव फिरता उद्भ्रांत ऐसे
लिए आसंग सिर्फ निराशा
विक्षत हो बाधाओं से
करके मानवीय मूल्यों की मौत ।।
?मधुप बैरागी