मानवता और जातिगत भेद
मानवता को छलनी करता,
जाति पंथ का भेद है।
मानव न मानव कहलाता,
हमको इसका खेद है॥
पहले कर्मों को बांटा,
फिर गया वर्ण में बांटा।
कर्मों पर आधारित जन को,
गया जाति में बांटा।
धीरे धीरे जाति जन्मगत,
करके किया विभाजन।
ऊंच – नीच का जहर मिला कर,
तोड़ दिया अनुशासन॥
गहरी खाई बना छूत की,
हिय में बनाया छेद है।
मानव न मानव कहलाता,
हमको इसका खेद है॥१॥
रुके नहीं अब भी फिर आगे,
धर्म को काटा छांटा।
इंसा तो छोड़ो लोगों ने,
ईश्वर को भी बांटा॥
छुद्र स्वार्थ के कारण कुछ तो,
वैमनस्य फैलाते।
धर्म की करते विविध व्याख्या,
पृथक् से पंथ बनाते॥
‘अंकुर’ ईश्वर अंश नहीं अब,
केवल नर का स्वेद है।
मानव न मानव कहलाता,
हमको इसका खेद है॥२॥
– ✍️निरंजन कुमार तिलक ‘अंकुर’
छतरपुर मध्यप्रदेश 9752606136