माथे पे कलंक कभी ना लगे
माथे पे कलंक कभी ना लगे
दुर्गुणों का संग कभी ना लगे
हे ईश्वर चाहत बस है यही कि
बददुआओं का रंग कभी ना लगे
दूजों के घर को जो उजाड़ दे
दुःखों के उनको पहाड़ दे
कोशिश ऐसी ख़ुशी पाने की और
ऐसी उमंग कभी ना लगे
जिसमें ना कोई संस्कार हो
सम्मान ना कोई सत्कार हो
ना ऐसी भीड़ से मैं कभी जुड़ूं
ऐसा हुड़दंग कभी ना लगे
खुद का ही बस पेट भरें
परमार्थ से सदा रहें डरें
जीवन पे ना ऐसी धूल जमे
और ऐसी जंग कभी ना लगे
ईमान का सौदा जिसमें हो और
पल पल बिकता हो विश्वास
जीवन को ऐसे जीने का
बेइमानी का ढंग कभी ना लगे
(स्वरचित)
दीपाली कालरा