मातृ-वीर का बलिदान
आंँखें ऊँनींदी ,ह्रदय है लाल,
मस्तिष्क ओढ़े हुए है काल,
बढ़ चला धारण किए,
तलवार,भाल और कटार,
लथपथ-लथपथ खून से,
रणभूमि के द्वार पर,
जोश और उमंग भरकर,
पीड़ा को हृदय में सहकर,
किए जा रहा खुद को,
बलिदान बलिदान…….।।१।
पताका लहराते हुए,
जश्न को मनाते हुए,
मृत्यु को हराने के लिए,
मातृभूमि को बचाने के लिए,
रुक-रुक कर खुद को,
बौछार सहते हुए ,
तूफान को चीरते हुए,
देश की आन-बान-शान बन के,
न्यौछावर किए जा रहा,
बलिदान बलिदान……..।।२।
एक बार नहीं हजार बार,
एक नहीं हर-एक,
थमेंगे नहीं रुकेंगे नहीं,
मातृभूमि का अपमान सहेंगे नहीं,
मिटा देंगे लुटा देंगे,
सिर कलम कर दिखा देंगे,
बता देंगे उन्हें यह मेरा है,
नहीं देंगे यह भूमि,
स्वयं को यहीं दफना देंगे,
बलिदान बलिदान………।।३।
???
#रचनाकार-बुद्ध प्रकाश;मौदहा हमीरपुर।