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8 Sep 2019 · 1 min read

मातृभूमि

मातृभूमि

हरी भरी फुलवाड़ी वाली
फल फूलों की डाली वाली
मेरी मातृभूमि है मेरी जान
मेरी मातभूमि है सदा महान

मंडराते मेघों की होती गर्जन
शंख ध्वनि बन कर उदघोषण
मेघों की तुच्छ स्वाति आकर
भूधर को निर्मल निर्मित कर
करती है मातृ मधुर मगुणगाण

सावन की है घटा बहार आती
प्राकृत की है नव आभा बढाती
शीतल प्रचण्ड हवा का झौंका
पास गुजरता बढा धरा की शोभा
नव होता है मातृ आसीम प्रकाश

बसन्त रंगीला मनोरम हैं आता
पुष्पों की है बरसात बरसाता
फुलवाड़ी फल फूलों से भरता
तरुवरों को हैं तरो ताजा करता
गाती है कोयल फिर मीठी तान

सुखविंद्र सिंह मनसीरत

Language: Hindi
1 Like · 636 Views
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