**मातृभूमि**
मातृभूमि शत शत प्रणाम
हे मातृभूमि तुमको प्रणाम |
सुरभित रूपसी वन शृंगार
हे सुखदायक दीनाक्षार
चरण तेरे मिलता विश्राम
मातृभूमि शत शत प्रणाम
हे मातृभूमि तुमको प्रणाम |
अंक हिमालय अविरल गंगा
अविरत गतिमय जीव बहु संगा
उपजे, हुए विलीन अविराम
मातृभूमि शत शत प्रणाम
हे मातृभूमि तुमको प्रणाम |
ह्रास नीर, पर्वत बहु कानन
विप्रलंभ अवनी का आनन
नारी अलंकार बिन कैसी
क्षत-विक्षत अवनी के जैसी
शीतल अंबु, वात प्राणमय
स्रोत धरा, हृदय करुणामय
हृदय विशाल पर क्यूँ आघात
जीवन रहित है श्व: प्रभात
हा मानव ! भूमि निष्काम
मातृभूमि शत शत प्रणाम
हे मातृभूमि तुमको प्रणाम |
निज सर्वस्व करता स्थापित
मानव, दानव सम परिभाषित
ज्यों मधुमक्षिका दंश डसाये
हतभागी निज जीवन खाये
धरा क्षति से वैसे ही अब
निज विध्वंश करेगा मानव
हो विसाल ना हो संग्राम
मातृभूमि शत शत प्रणाम
हे मातृभूमि तुमको प्रणाम |
मातृभूमि शत शत प्रणाम…………………..
– स्वरचित (मौलिक) @@@ लक्ष्मण बिजनौरी (लक्ष्मीकान्त)