मातृभाषा
अपने ओफिस के पास चाय की दुकान पर हिन्दी दैनिक अकबार की जगह गलती से अग्रेजी अखबार डाल गया है। चाय वाले ने सारा दिन फोटो देख-देख कर दिन गुजार दिया। शाम को मेरे पास आया कि यह अग्रेजी अखबार आप ले लो, हमारे को अग्रेजी आती नहीं है और ना ही हमारे किसी ग्राहक ने, अभी तक ये अग्रेजी अखबार पढा है। मैं चाय वाले का मुहँ देख कर सोच रहा हूँ कि फिर अग्रेजी जानने वालों का इतना सम्मान क्यों होता है या फिर मातृभाषा कुछ नहीं है ?
– बीजेन्द्र जैमिनी