मातृदिवस
मातृ दिवस
मानव ईश्वर की बनाई हुई उत्कृष्ट रचना है । ब्रह्मांड का सबसे खूबसूरत जीव जिसे संसार के सभी सुख हासिल करने का अधिकार प्राप्त है । दुनिया के तमाम भावों को महसूस कर सकता है और अभिव्यक्त कर सकता है । हंसना , रोना , गाना इन क्रियाओं को संपादित करते हुए अपने मन मस्तिष्क में उठ रहे विचारों , भावनाओं और अनुभूतियां को साझा कर सकता है । एकमात्र मानव ही ऐसा जीव है जिसे जन्म लेने के पहले से ही प्रेम , प्यार , स्नेह और ममता मिलने लगती है । उसे प्रेम पाने के लिए कोई क्रिया कलाप , रूप , गुण की आवश्यकता नहीं पड़ती है । प्रेम पाना उसका जन्मसिद्ध अधिकार है । कोख में पल रहे शिशु के शरीर के उसके अंग विकसित होने से पहले ही उसे मिलने लगता है । मां को यह भी पता नहीं होता है कि वो पुत्र होगा या पुत्री होगी ? बस यही काफी होता है कि एक हस्ती जन्म लेने वाली हैं जो उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि होगी । सृष्टि को बरकरार रखने में उसका भी योगदान दर्ज हो जाएगा । ईश्वर उसे संसार का सबसे बेशकीमती उपहार और सबसे बड़ा सम्मान देने के लिए चुना है । नारी जीवन की पूर्णता तो मां बनने के बाद ही है । उसके जीवन की सार्थकता और स्त्रीत्व की रक्षा मां बनकर ही संभव है । स्त्री का विवाह के बाद मां बन जाना एक सामान्य सी बात है लेकिन “मां ” बनने के बाद उसे विशेष मान सम्मान और प्रेम मिलने लगता है । मातृ दिवस पर जो ढेरों शुभकामनाएं और उपहार मिल रहें हैं दरअसल इसका श्रेय हर स्त्री के संतान को जाता है । अगर संतान पैदा नहीं होती तो स्त्री को ब्रह्मांड का श्रेष्ठ सम्मान नहीं मिलता और ना ही शुभकामनाएं और उपहार । मेरी निजी राय है कि मातृ दिवस पर हमें अपनी संतान का आभार प्रकट करना चाहिए और उसे उपहार देना चाहिए । मैं तो तहेदिल से अपनी संतानों की शुक्रगुजार हूं जिनके वजह से मुझे सम्मान मिला और आज उनकी पहचान से भी सम्मानित होती हूं । वास्तव में यह अधिक गर्व की बात है कि मैं अपनी निजी पहचान से अधिक अपने संतान की मां बनकर सम्मानित हो रही हूं । ईश्वर से प्रार्थना है हर स्त्री को मातृत्व सुख मिलें और मातृ दिवस पर वो अपनी संतान से सम्मानित हों और उनका आभार प्रकट करें ।