मातृत्व वास्तविकता है पितृत्व विश्वास
मातृत्व वास्तविकता है पितृत्व विश्वास
पिछले कई महीनों के भाग दौड़ के बाद मेरी कंपनी और एक राज्य सरकार के बीच समझौता ज्ञापन
हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हुआ तथा मेरे कंपनी को सूचित किया गया की अधिकृत पात्र हस्ताक्षर हेतु उपस्थित हों.
मैं औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए उस राज्य सरकार के कार्यालय में निर्धारित दिनांक में 10 बजे पहुंचा. बैठक प्रारम्भ हुआ, मैने समझौता ज्ञापन पढ़ा, तथा ज्ञापन सही मिला, मैंने ज्ञापन की स्वीकृता प्रकट कर दी. तथा समझौता ज्ञापन पत्र हेतु रु 450/= दें दिया, जो की राज्य सरकार के न्यायिक स्टाम्प पेपर पर लिखा जाना हैं.
जबतक समझौता ज्ञापन न्यायिक स्टाम्प पैपर पर तैयार हों रहा था, चीफ कमिश्नर व मैं विभिन्न विषय, जोकि ज्ञापन से लिप्त हैं, उस कार्य के संचलन की विधि पर वार्तालाप कर रहें थे.
कुछ समय पश्चात समझौता ज्ञापन, विधि पूर्व न्यायिक स्टाम्प पैपर पर तैयार हो कर आ गया, अब हस्ताक्षर होना है, मैंने सरसरी तोर पर एक बार समझौता ज्ञापन पर नज़र दौड़ाई औऱ अपना हस्ताक्षर कर, कंपनी की मोहर लगाया व दिनांक लिख दिया. चीफ कमिश्नर ने, मेरा हस्ताक्षर देखा तथा कंपनी की मोहर पढ़ी, जिस पर मेरे नाम के निचे लिखा था, अधिकृत पात्र ( Aouthorised Signatory ). चीफ
कमिश्नर साहब ने हस्ताक्षर न कर के, बोले : तो आप अधिकृत पात्र हैं.
मैं : जी
कमि : आप का अधिकृत पात्र का, कंपनी द्वारा लिखित पत्र.
लेकिन दुर्भाग्य से मेरे पास हस्ताक्षर करने का अधिकार पत्र नहीं था, लाया ही नहीं, कभी ज़रूरत ही नहीं पढ़ी कही भी; मेरे मुँह से निकल गया, लगता हैं, होटल में छोड़ आया. फिर मैंने कहा, सर पिछले 6 माह से आपके साथ जो भी पत्राचार हुआ वह मेरे ही हस्ताक्षर से हुआ, एवं मैं भी आप से 6 माह से परिचित हूँ औऱ आप भी.
बस इतना कहना था की, चीफ कमिश्नर जी क्षुब्ध, भृकुटी तन गई (हमारे देश में जितने भी आईएएस पद अधिकारी हैं, जब तक उनकी बात न कटे, तब तक ठीक, पर जैसे ही आप उन को समझने की चेष्टा करेंगे, उनकी व उनकी कुर्सी की गरिमा प्रचंढ़ता हो जाती हैं ) कियूं की वह शायद समझ गये, मैं झूठ बोल रहा हूँ.
फिर शठता से मुस्कुराये कहा, ओके, आप अधिकृत पात्र पत्र, होटल से लें कर शाम 4 बजे, आइये.
मैने उन्हें धन्यवाद, कह कर होटल भगा. कंपनी के MD को फोन कर सारी बात बताई, उन्होंने मुझे सलहा दी कंपनी का लेटर हेड तो, आपके पास हैं, अधिकृत पात्र का पत्र बना
कर, मेरा हस्ताक्षर मार देना. मैं भगा कच्चेरी की ओर पत्र टाइप करवाने.
जल्द ही काम पूरा कर, होटल पहुंचा, तथा MD को फोन पर पत्र पढ़ कर सुना दिया, वह बोले ठीक हैं. मेरा मन अब शांत हुआ.
मैंने लंच किया औऱ करीबी 3.45 पर चीफ कमिश्नर जी के ऑफिस पहुंच गया.
उनके PA ने बैठने को कहा, तथा थोड़ी देर बाद मैं कमिश्नर जी के साथ बैठा औऱ अपने ब्रीफकेस से अधिकृत पत्र निकल के उनको दिया.
उन्होंने पत्र सिर्फ 15 सेकेण्ड ही देखा औऱ कहा, पत्र एक दम सही हैं, लेकिन आपके MD के हस्ताक्षर की पुष्टिकर्ण नहीं है, जोकि या तो आपके कंपनी के बैंक मैनेजर द्वारा या कोर्ट के 1st Class मजिस्ट्रेट द्वारा होना चाहिये.
जब मैने इतने महीनो की, आने जाने को दोबारा दोहराया, उन्होंने बहुत ही गंभीर शब्दों में कह दिया, सरकार के यहाँ जान पहचान की नहीं प्रमाणित प्रमाण चाहिये.
आप वापस जाइये, औऱ हमें अधिकृत पात्र का पत्र, आपके एमडी के हस्ताक्षर प्रमाणित प्रमाण सहित डाक द्वारा भेज दें ; आपको दुबारा आने की ज़रूरत नहीं, कियूं की आप ने हस्ताक्षर कर दिया है, आपका पत्र मिलने के बाद, आपका हस्ताक्षर प्रमाणित हो जायगा, तब हम समझौता ज्ञापन में हस्ताक्षर कर, ज्ञापन को डाक द्वारा आपको भेज देंगे.
हमारी योजना धराशायी हो गई, और मैं पिछले 6 महीने से चकर लगते लगाते तंग हों गया था, मुझे बहुत गुस्सा आया और कहा, सर आखिर ट्रस्ट (विश्वास) नाम की कोई चीज होती है। अधिकारी ने फिर गंभीरता से कहा कि उन्हें खेद है, कानूनी कृत्य में ट्रस्ट ( विश्वास ) का कोई लेना-देना नहीं है.
हालांकि हमारी मदद करने के लिए वह उचित सत्यापन के साथ हस्ताक्षरित होते ही समझौता ज्ञापन पोस्ट करेंगे.
तब तक मैं अति क्षुब्ध हों गया था, मैंने कहा, सर वापस जाने से पहले क्या मैं आपका पूरा नाम जान सकता हूं, उन्होंने मुस्कुराते एवं मेरी अवस्था भाँपते हुए अपना पूरा नाम मुझे कहा.
फिर मैंने पूछा, सर, आपके पिता का नाम क्या है, एक पल के लिए वे रुके फिर मुझे बताया.
तब तक मेरी बुद्धि बहुत कुटिलता में पहुंच गया था.
मैंने कहा: सर, क्या प्रमाण है कि वह आपके पिता हैं?
वह खड़े हो गये और गुस्से निगाहों से मुझे घूर रहे थे और कांप रहे थे.
मैंने हाथ जोड़ कर शांत होने को कहा. आप एक ऐसे पद हैं जिसे कोई नहीं छीन सकता मैं व्यवसाहिक कर्मचारी हूं, हम किसी भी पल कोई भी कार्य न होने पर नौकरी खो देते हैं. हालाँकि मैंने जो कहा, वह आपकी टिप्पणी सरकारी प्रथा में विश्वास नहीं, प्रमाणित प्रमाण चाहिये; का एक कटु एवं प्रचलित सत्य विश्वास से चल रहा है.
“मातृत्व एक भोतिक सत्य है और पितृवत एक विश्वास.
हम, पूरी दुनिया में इसी विश्वास के साथ चलते हैं. यह विश्वास आपका कानूनी नाम है जिसके द्वारा आपकी और दुनिया की पूरी पीढ़ी आगे बढ़ाते है. अतः पीढ़ी दर पीढ़ी इसी विश्वास से पूर्ण विश्व में चल रहा है. मैं अपने क्षुब्ध भाव को रोक नहीं पाया. अतः शर्मिंदा सहित क्षमा प्राथी. धन्यवाद, मैं जा रहा हूँ, एवं पत्र डाक द्वारा भेज दूंगा . नमस्कार.
उन्होंने आगे आकर मेरा हाथ पकड़ा औऱ मुझे अपने घर पर रात के खाने पर आमंत्रित किया.
मैं उनके निवास स्थान रात्रि को सम्माजिक रीती अनुसार, मिष्ठान एवं एक फूलों का गुलदस्ता लें के पहुंचा. वहाँ उन्होंने पहले अपनी पत्नी से परिचय कराया, फिर अपने माता-पिता से परिचय कराया. उनके पिता सेवानिवृत्त आईसीएस थे, पहले कुछ सामाजिक वार्ता के बाद, कमिश्नर जी मेरे से बोले, आप जो बात मुझे मेरे कार्यालय में बोले थे, मेरे पिता जी से बोलिये.
मैं तो बड़े असमंजस में पड़ गया ! उन के पिता काफ़ी वयस के थे, लेकिन गरिमा एवं धीरज अभी भी मौजूद थी. मैंने कमिश्नर जी से कहा : क्या आप, अपने पिता से पूछने में भय या संकोच अनुभव कर रहें हैं ? यथर्ता जानने के लिये, इन से उत्तम दूसरा नहीं हों सकता l मैं इनके लिये एक अपरिचित एवं अज्ञात व्यक्ति हूँ, एवं मुझे इस सम्बन्ध में, इन से प्रश्न का अधिकार नहीं हैं.
उन के पिता जी ने, पूछा क्या प्रश्न इतना विकट एवं अधिकृत हैं ?
कमिश्नर जी ने पहले मुझे देखा, फिर अपने मताजी से बोले, माँ आप अंदर जाइये.
इससे पहले कि मैं कुछ बोलता, उन के पिताजी ने अपने स्त्री से कहा, नहीं आप यही बैठे, बेटे ने अगर, किसी अज्ञात को किसी प्रश्न के उत्तर के लिये बुला कर, स्वं न पूँछ कर उन से पूछवाना चाहते हैं , जो कि उन्होंने स्पस्ट रुप से मना कर दिया, अतः वह प्रश्न हमारे संम्बन्ध में ही होगा, आप यही बैठे.
फिर उन्होंने अपने बेटे से कहा, आप पूँछीये क्या पूछना है !
कमिश्नर जी ने सम्पूर्ण प्रकरण उन को बताया..
उन के पिता एवं माता दोंनो, मुस्कुराये एवं उन्होंने कहा, मैं सही हूं, लेकिन सरकार का मापदंड अलग हैं. यह उनके बेटे पर निर्भर है, मेरी सलाह हैं कि वह वही करे, जो वह ठीक समझे.
रात का खाना समाप्त करने के बाद उन्होंने अपने ड्राइवर से मुझे मेरे होटल में छोड़ आने को कहा और मुझसे बोले आप कल 11.30 बजे उनके कार्यालय में आएं.
दूसरे दिन समय सारिणी अनुसार उन के कार्यालय पहुंचा. समझौता ज्ञापन पर उनका हस्ताक्षर व कार्यालय सील सहित तैयार था. जो उन्होंने मुझे दी एवं साथ ही मेरा बनाया हुआ अधिकृत पत्र और मुझे कहा अपने स्थान से एक प्राधिकरण, मय अधिकृत प्रमाणित पत्र को पोस्ट द्वारा भेज दें.
मैंने उन्हें धन्यवाद दिया औऱ कार्यलय के दरवाज़े कि ओर बढ़ा, वें भी मेरे साथ कार्यलय के दरवाज़े तक आय, मैने फिर धन्यवाद कहा ; वें बोले अब आप का काम तो हों गया, पर चलते चलते एक बात तो सच बता दीजिये! मैंने उन्हें देखा, वह मुस्कुराये, मैं भी मुस्कुराया और बोला, आपने सही सोचा. फिर हँसे औऱ बोले, मैंने भी एक बार क्लास टेस्ट में 5 का 8 बनाया था ; पिता जी से बड़ी पिटाई खाई थी… हम दोनों बहुत हँसे, मैने उन से कहा, मैं खुद अधिकृत पत्र लें कर आऊंगा…..
ट्रैन पकड़ा अपने कार्य स्थल पहुंचा, तथा उसी दिन अधिकृत हस्ताक्षर पत्र, मय अपने MD के प्रमाणित हस्ताक्षर सहित बनवाया. एवं दूसरे ही दिन, फिर ट्रैन पकड़ कर चीफ कमिश्नर के कर्यालय में स्वं पत्र सौंपने चल पड़ा….
परमेश्वर ! मैं भाग्यशाली हूँ !
मानव हाथ के आयाम से ! ??
खैर जो भी हो…