राम के जैसा पावन हो, वो नाम एक भी नहीं सुना।
रिश्तों से अब स्वार्थ की गंध आने लगी है
घनाक्षरी छंदों के नाम , विधान ,सउदाहरण
हम तो हैं प्रदेश में, क्या खबर हमको देश की
धरती सा धीरज रखो, सूरज जैसा तेज।
ग़ज़ल _ याद आता है कभी वो, मुस्कुराना दोस्तों ,
खोने के लिए कुछ ख़ास नहीं
शक करके व्यक्ति अपने वर्तमान की खुशियों को को देता है रिश्तो
पूछ मत प्रेम की,क्या अजब रीत है ?
अक्सर हम ज़िन्दगी में इसलिए भी अकेले होते हैं क्योंकि हमारी ह
इंसान की इंसानियत मर चुकी आज है
भगवान भले ही मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, और चर्च में न मिलें
एक उजली सी सांझ वो ढलती हुई