माता पिता
धूप पड़ता है मुझ पर,
तो वो छांव बन जाता है,
बारिश के मौसम में कभी,
वो बनता छाता है,
ठंडी में वह गर्म हवा सा,
ग्रीष्म में शीत बरसाता है,
खुद तो झेलता है दुःख,
पर हमसे वो छुपाता है,
बनकर वो खुशियां हमारी,
सारे गम चुराता है,
हमें सिखाने के ख़ातिर वो,
खुद जीना भूल जाता है,
बुराइयों को दूर करके,
अच्छी राह दिखाता है,
मेरे रोने पर रोता है,
हंसने से मुस्काता है,
झगड़ा होता है जब मेरा,
वो सब से लड़ जाता है,
जब मैं बोलूं चांद चाहिए,
वो तोड़ ले आता है,
खुद तो धरे पुराने कपड़े,
राजा मुझे बनाता है,
लड़कर सारे कठिनाइयों से,
मेरे लिए कमाता है,
पहले पूछता हाल मेरा,
फिर बाद में खाना खाता है,
सबसे बड़ा ईश्वर है वो,
वो सबसे बड़ा विधाता है,
वो कोई और नही है साहब,
एक पिता है दूसरा माता है ।।
– विनय कुमार करुणे