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11 Dec 2019 · 1 min read

माता पिता की छाया

गांव का वृक्ष
देता छाया
मुसाफिरों को
फैलता गया शहर
सिमटता गया गाँव
बनने लगीं बल्डिगें बड़ी
कटने लगे वृक्ष बेरहमी से
छाँव को तरसने लगा
इन्सान
ढूंढ़ते थे छाया
पेडों के नीचे
अब ढूंढ़ते हैं
बिल्डिंग्स के कौनों में

मिलता है
प्यार और मोहब्बत
माता पिता से
कब हो जाते हैं
इतने निर्दयी
भूल जाते हैं
माता पिता की छाया
बेसहारा , अकेला
छोड़ जाते हैं बच्चे

अपनी छाया पर भी
मत करो विश्वास
कौन कहाँ देगा धोखा
भरोसा नहीँ

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

Language: Hindi
444 Views
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