माता-पिता ईश्वर के समान
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वृद्धाआश्रम में छोड़ गया,
ये कैसा संतान।
माता-पिता की फिर भी,
बसती है इन्हीं में जान।
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माता-पिता तो रूप हैं
ईश्वर के समान।
फिर भी मंदिर में ढूंढतें,
ये कैसा नादान।
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घर में माता-पिता का
दिन-रात करे अपमान।
मंदिर जाकर पूजते,
पत्थर के भगवान।
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माता-पिता का जो सेवा करे,
खुश होते भगवान।
माता-पिता के आशीष से,
बने सबसे धनवान।
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बुद्धि परीक्षा जब लिये
शिव शंकर भगवान,
बड़े चतुर गणपति ज्ञानवान।
माता-पिता का परिक्रमा कर,
पायो प्रथम पूज्य स्थान।
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माता-पिता की सेवा करना,
जब तक जान में है जान।
कभी नहीं अपमानित करना,
नित उठ करना प्रणाम।
????-लक्ष्मी सिंह ?☺