“माटी ” तेरे रूप अनेक
“माटी” तेरा कोई मोल नहीं इस सारे जहाँ में ,
तेरे प्रेम का कोई जोड़ नहीं इस सारे जहाँ में ,
कभी खिलौना, कभी मूरत तो कभी तू “दिया” बन जाती है,
अपने असंख्य रूपों से “दुनिया” को एक दिशा दिखा जाती है,
नन्हे बालक को खिलौना बनकर उसके मन को हँसा जाती है,
निष्कपट भक्त को मूरत का रूप दिखाकर खुशियां दे जाती है,
अमावस की रात में “दिए की रोशनी” से जग को जगमगाती है I
“माटी” तेरा कोई मोल नहीं इस सारे जहाँ में ,
तेरे प्यार का कोई तोड़ नहीं इस सारे जहाँ में ,
नन्हे पौधों को अपनी गोद में खिलाकर उसे एक वृक्ष बनाती,
नदियों की “माटी” बनकर खेतों की जमीं को उपजाऊ बनाती,
नींव की “माटी” बनकर आशियाने की आधारशिला बन जाती ,
कचरे की “माटी” बनकर पौधों की जीवनरूपी खाद बन जाती,
ईट की “माटी” बनकर त्याग की एक अनोखी मिसाल बन जाती I
“माटी” तेरा कोई मोल नहीं इस सारे जहाँ में ,
तेरे आत्मबल का जोड़ नहीं इस सारे जहाँ में ,
“राज” तेरी सुंदर,चंचल काया एक दिन “माटी” में मिल जाएगी,
नाम, सत्ता, गुमान की पोटली सब कुछ “माटी” में मिल जाएगी,
अँखियाँ तेरी “माटी” के अनमोल रूपों को निहारती रह जाएगी,
तूफानों के बीच “प्रेम के दीपक” की रोशनी ही केवल बच पायेगी,
इंसानियत की “ माटी ” मालिक के क़दमों से तुझे नमन कराएगी I
“माटी” तेरा कोई मोल नहीं इस सारे जहाँ में ,
तेरे प्रेम का कोई जोड़ नहीं इस सारे जहाँ में ,
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देशराज “राज”