✍️माटी का है मनुष्य✍️
✍️माटी का है मनुष्य✍️
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तू सृष्टि,कलुषित
उत्पत्ती है मानव ।
तू दृष्टी पापहीन
वृत्ती है दानव..।।
तू अधीर लोभ
चित्त मोह है मनुष्य ।
तू हृदयी भावनाहीन
लिन भोग है नर ।।
तू बुद्धि शुद्र
नीच रोग है आदम।
सर्व जग नश्वर बन
काया ना देखे ईश्वर ।।
काहे मानव तू
आतुर ईच्छा में।
माटी की घाघर तू
माटी से बन
फिर माटी में ही तो मिले ।।
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✍️”अशांत”शेखर✍️
07/06/2022