माटी का सजीव पुतला
बना सजीव माटी का पुतला,थी कुदरत उत्साहित।
बीच चौरासी योनि थी हुई, अद्भुत सुकृति निर्मित।
नीलम नभ में घुमा चाक,स्वयं प्रकृति ने माटी सानी।
सोचा कि नव निर्माण करेगा और बनेगा मानव ज्ञानी।
विविध रंग तुलिका से रंगा,सजीव माटी का पुतला।
लालच, झूठ, फरेब ने नैतिक संस्कारों को उथला।
होते ही निर्माण माटी का पुतला,लगा हाहाकार मचाने।
जंगल-वन-उपवन उजाड़के, लगा वसुधा-धरा हथियाने।
हथिया लूँ आसमान पूरा, पुतले का तन-मन यूँ मचला।
सूखे जल-तल-कूप अतिशय से,मुरझाई देख माँ अचला।
“नीलम” हर विकास के लाभ संग,सुन!पतन भी होता है।
जब धराशायी वट वृक्ष होता,तो कई लघुओं को खोता है।
नीलम शर्मा