” माखन – हांडी “
गोपाला….
माखन – हांडी
तुम्हारा पर्याय तुम्हारा योग ,
पर इस कलियुग में
कोई भी इस हांडी को फोड़
नही लगाता तुम्हारा भोग ,
अब तो हांडी को फोड़ने पर
लगती है जान की बाजी जम कर ,
मिलता है ईनाम
तुम्हारा नही रहता ध्यान ,
क्या कर्म क्या भक्ति
सब भूल गए तुम्हारी शक्ति ,
तुम्हारी पूजा की लगा बाज़ियाँ
लगाते हैं ये कलाबाज़ियाँ ,
आ गए अगर गलती से
तुम तोड़ने हांडी
तो ना तोड़ पाओगे
और ना खा पाओगे माखन ,
क्यों कि यहाँ अब सब नकली है
भक्ति भी नही असली है ,
तुम्हारी नीति से भी बड़ी नीति है
उस युग से भी बड़ी राजनीति है ,
दंग रह जाओगे देख ये सब
कहोगे माफ करो मुझे अब ,
नही बिठा पाया कलियुग के हिसाब का योग
रखो अपनी माखन – हांडी
नही चाहिए मुझे तुम्हारा ये नकली माखन – भोग ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23 – 08 – 2016 )