माई
माई तेरा आँचल धूप में छांव जैसा
माई तेरा दामन भंवर मे नांव जैसा
माई मुझे चोट लगती है ऐसे न कहो
माई तेरा गुस्सा प्यारा-सा घाव जैसा
माई कुछ आवाजें मुझे ढुंढती है
माई निशा की रुदन, मुझे टटोलती है
सुबह होने तक, माई तुम्हारे जगने तक
मुझे अक्सर एक पीड़ा,रात भर रहती है
कोई दिन निकल जाये कि तुम ठहर जाओ
माई चैन ही छीन जाए गर तुम ठहर जाओ
ये फूरसत की बातें और ये सुकुन के पल
माई सब बिखर जाये कि जब तुम ठहर जाओ
माई कह दिया होता जो तसब्बुर भी थे
माई कह तो दिया होता पर मजबुर भी थे
ये बे-बाक सी बातें, तुम्हारे होने से ही
माई मिट गया होता ,अगर माहुर भी थे