माई लॉर्ड का कमरा देखा
आज मैंने माई लॉर्ड का कमरा बड़े गौर से देखा,
वहां पर नहीं थी आंखे बांधे वो न्याय की देवी,
तौलती हुई न्याय को समानता के तराजू से ।
जिसको न्याय देने के लिए बनाया कोर्ट,
उसी को टूटी – फूटी कुर्सी पर बैठाया,
फिर न्याय को तरसते जन-मानस को पाया ।
आते जाते सफेद शर्ट और काले कोट में,
छोटे – बड़े बहुत से वकीलों को देखा,
वकीलों से सलाह करते फरियादी को देखा ।
संतरी को भी आवाज लगाते देखा,
आवाज़ के साथ फरियादी को दौड़ते देखा,
छिपाते हुए चुपके से निकालते पैसों को देखा ।
वकीलों के चेहरे पर हाव – भाव को देखा,
फरियादियों के चेहरे पर लाचारी का घाव देखा,
कोर्ट के अंदर खुलेआम मोल -भाव देखा ।
लगाता था मुझे मिलता होगा न्याय आम आदमी को,
लेकिन मैंने न्याय के लिए तरसते लोगों को देखा,
आज मैंने माई लॉर्ड का कमरा बड़े गौर से देखा ।