मां
सर्दी की गुनगुनी धूप सी हो तुम..
गर्मी में हरे वृक्ष की छांव हो तुम..
बारिश में रिमझिम सी बूंद हो तुम..
बसंत में खुशबू बिखेरती कली हो तुम..
मां तुम्हे क्या परिभाषा दूं?
और क्या तुम्हें विशेषण दूं?
इस धरती की सारी उपमाओं से परे हो तुम!!
कभी थकती नही, और तरोताजा हो जाती हो मेरी एक मुस्कान से..
कैसे पढ़ लेती हो शिकन मेरे चेहरे के!
तुम्हें परी कहूं या जादूगर!
जो “ममता “के आंचल की छड़ी घुमा,
हर लेती हो मुश्किल मेरी..
और भर देती हो नए हौंसले से
भरने फिर से नई उड़ान!!
✍️अंजना