मां के बिन क्या ज़िन्दगी ऐसे सताती है
माँ मुझे अपनी क़सम अक्सर खिलाती है
ख़ुद कभी मेरी क़सम हरगिज़ न खाती है
हर कोई मुझको बुरा कहता ज़माने में
एक माँ है जो मुझे अच्छा बताती है
लोरियाँ गाकर सुलाना ही नहीं काफी
माँ मुझे सबसे बड़ा सपना दिखाती है
क्या बताऊँ मैं तुम्हें क्यों याद आई माँ
याद आती है अगर माँ की तो आती है
ज़िन्दगी कुछ रहम भी कर मत सता मुझको
माँ के बिन क्या ज़िन्दगी ऐसे सताती है
…शिवकुमार बिलगरामी