मां
उसका आँचल था आसमान सा विस्तृत, जिसने छुपा लिया उस नन्हे से बीज को,
सींचा, उसने जिसे ममता की बूँद से, बीज ने आँखे खोली, पोधे आए…..
पौधो को बचाया,हवा क झोंके से, दिया एक शीतल प्रकाश अपनी आँखो से
दिया एक गर्म एहसास,अपनी हथेलियो से,
पौधे बढ़ते गये, पेड़ हो गये…..
उनमे फूल आए, फल आए, उसका मन, भर आया असीम प्रेम से
उसने चाहा फिर उन्हे छूना , पूचकारना, पहले की तरह,
पर……
उसके हाथ नही पहुचे उन तक,
वे पेड़ अब भूल चुके थे वो नम्र हथेलियाँ,
वे खड़े थे अहंकार मे, क्यूंकी वे झुक नही सकते थे
फिर भी वो खड़ी रही, इस आस मे, शायद….
वो फिर झुक कर उससे लिपट जाएँ, पौधो की तरह…
वाह रे ममता, महान हैं माँ,
स्वार्थ से परे, स्वयं से परे, सिर्फ़ प्रेम से ओत – प्रोत है ममता
महान है ममता……..|