मां
जब कभी रोता था, चुप करा देती थी मां ।
अपने आँचल तले दुग्ध पिलाकर हमको सुला देती थी मां ।
दर्द से जब कहराता था ।
मां को चैन नही आता था ।
लगता ऐसे जैसे उनको ही पीङा होता था ।
जब कभी रूठ जाता हमको मना लेती थी मां ।
अपने भूखे रहकर हमको खिला देती थी मां ।
सुखे मे हमको सुलाकर खुद गीले मे सो जाती थी ।
दे खिलौने हाथ मे हमको बहलाती थी मां ।
रात चन्दा मामा की कहानी सुनाती थी मां ।
उनके लिए मै चांद का टुकड़ा था ।
मेरे लिए ईश्वर का मुखङा था ।
अंगुली पकड़कर चलना सिखायी थी मां ।
गिरता था जब तो उठायी थी मां ।
आज बंध गए सात फेरो के बंधन में ।
फिर भी वैसे ही प्यार दिखाती है मां ।
पत्नी की सुनकर चलने लगा मै ।
मां को भला बुरा कहा मै ।
फिर भी न कुछ कहती थी मां ।
बोझ लगने लगी जब मां ।
तो डाल दिया वृद्धाश्रम मे।
मै ये भूल गया कि नौ महीने गर्भ में पाली थी मां ।
आज जब मां मेरे बीच मे नही तो ।
फिर आखिर क्यूं रोता हूं मै ।
जीते जी न कर सका सेवा ।
अफसोस होता है अब यह सोचकर ।
फिर भी कभी सपने में आ ही जाती है मां ।
हो न बेटा सही सलामत पूछ जाती है मां ।
फोटो लगाया मां का धूपबत्ती दिखाता हूं ।
सिहर उठता है यह सोच बदन मां को क्यो मारा था मै ।
अब भी चोट लगती है तो भी याद आती है मां ।
दुनिया मे न होगा तुझ सरीखे कोई मां ।
मां,मां, मां, ??????????
Rj Anand Prajapati