मां
ऐ मां, अरसा बीत गए, लाड़ कर ना अपने पूत को,
दे संदेशा खबर की अपनी, चल भेज अपने दूत को,
तेरी यादों से लदा ये जिस्म, तुझे देखन को तरसे
नैनों का क्या कसूर, देख तेरी तस्वीर, ये झर झर बरसे ।।
खाता हूं आधे पेट, फिर भी मन है भर अब जाता,
निवालों में अब वो बात नहीं, जो था तेरे हाथों से बढ़ आता,
झुलसे हैं अंग मेरे, ना छाया को तेरे आंचल रे,
ना तेरे पायल की छमक है गूंजे,
ना तेरे कदमों की आहट रे ।।
जब आता हूं देर, बस बंद दरवाज़ा पाता हूं
ना इंतज़ार में कोई, ना देर को कोई डांटे,
क्या खाऊं, खुद ही पूछूं, खुद ही फिर सो जाता हूं
गंदे बिस्तर में लिपटता, जब थक कर घर को आता हूं ।।
मिले कई अजनबी, देखा जिसमें मां तेरा रूप,
पर ना हुआ मैं परिचित ममता से, ना स्नेह का दिखा स्वरूप,
थे लम्हें बड़े ही प्यार वो, जब गोद में तेरे, थे माथे मेरे,
इब चाहूं दिन वैसी फिर कोई न्यारी हो, मेरी बालों पर तेरी हाथों कि रखवारी हो,
ऐ क्यूं ना तू पुचकारे मां, हैं क्या जाते तेरे ।।
तू रूठ ना फिर से, मैं तुझको मनाऊंगा,
तू बुला ना फिर से, मैं कहीं छुप जाऊंगा,
चल तू जा के काम कर, बस इक दफा तुझे सताऊंगा,
मां तू चीख ना मुझ पर, मैं फिर से चुप हो जाऊंगा ।।
देख, देख मां तेरे ये बाल, सफ़ेद परने लगे अब,
देख, देख मां तेरे ये चमरी, सिकुड़ने लगे हैं अब,
तू तो बूढ़ी हो गई, तुझे याद तो हूं ना मैं ?
अरे तू करेगी क्या चश्मे का, तेरे पास तो हूं ना मैं ।।
एक तेज़ हवा का झोंका आया, तेरी आहट का संदेशा लाया
रख ना पैर ज़मीं पर तू,
की कदमों में तेरे जन्नत है माई
झुके शीश मेरे को मिले सदा आशीष तेरे,
रब से ये मांगा मन्नत है माई ।।
– निखिल मिश्रा