मां
मां
ममतामई मां तुझ पर जान न्योछावर है।
एक झलक पाने के लिए नयन तरसे हैं ।
तू छोड़ कर कहां चली गई मां ,
तेरी यादों के सहारे हूं ।
सांसे केवल चल रही मां,
शरीर निर्बल लिए बैठा हूं ।
मां चीखती चिल्लाती है,
काम कर के बोझ उठाती है ।
पेट भरती,पानी पीती,
फुटपाथ में सो जाती है ।
बच्चों की जुदाई में ,
रो-रो कर बेहाल हो जाती है ।
काम में शहर की ओर जाता हूं ,
जाकर वहां मां से मिल जाता हूं ।
चूमती चाटती मां सीने से लग जाता हूं ।
सारे टिस बुलाकर खुशी से झूम जाता हूं।
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रचनाकार कवि डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
पीपरभवना, बिलाईगढ़, बलौदाबाजार (छ. ग.)
8120587822