मां
जब भी उदासी मे होती हूँ मैं तो
मांँ प्यार भरी बाहें खिलार देती हैं । जब भी कभी रोती हूं मैं तो
मांँ अपने आँचल से आंंसू पोंछ देती हैं। जब भी कभी बेसुध होती हूं मैं तो
मांँ फूलों जैसी खुशबू बिखेर देती हैं। जब भी कभी नींद आती है मुझको तो
मांँ अपनी गोद मेंं सुला देती हैं। जब भी कभी नींद न आए मुझको तो
मांँ प्यार भरी लोरी सुना देती हैं। जब कभी अश्क न रूकते हो मेरे तो
मांँ प्यार से पुचकार देती हैं। जब कभी रास्ता भूल जाती हूं मैं तो
मांँ उंगली पकड़ कर ले जाती हैं। जब कभी भूख लगती हैं मुझको तो
मांँ प्यार से खाना खिला जाती हैं। जब कभी काम में थक जाती हूं मैं तो
मांँ आ के मेरे सारे काम कर जाती हैं। जब कभी चोट लगती हैं मुझको तो
मांँ आ के मेरा सारा दर्द ले जाती हैं। जब कभी मुसीबत मेंं होती हूं मैं तो
मांँ भगवान से सारी दुआएं ले आती हैं। ऐ भगवान कैसी बनाई हैं ये मांँ
सामने न हो तो मुझे इसकी याद सताती हैं।
कृति भाटिया ,बटाला ।