मां
* मां *
अनन्त रुपी रब का कुछ सिमटा सा विस्तार है मां…
आड़ी तिरछी रेखाओं का अजब सा आकार है मां…
मैं हूं एक छोटा सा पहलू और सकल संसार है मां…
इस दौड़ धूप की बेचैनी में सुकून का दीदार है मां…
हर पीड़ा पर दिल से निकले ऐसी एक पुकार है मां…
आंसू को मरहम में बदल दे ऐसा चमत्कार है मां…
हार पर हौसला दे जीत पर गूंजे वो जयकार है मां…
आंखों की नमी कभी ना दिखाएं ऐसी खुद्दार है मां…
लोरियों से मेरा जीवन महकाए वो गीतकार है मां…
मेरे जीवन के इस पतझड़ फूलों की बहार है मां…
जीवन सांचे में ढालने वाली कुशल कुंभकार है मां…
मेरे सपनों में रंग भरने वाली अनूठी चित्रकार है मां…
नाना रूपों में निभता हुआ गजब का किरदार है मां…
जिसके कदमों में जन्नत मिले वो रब का दरबार है मां….
सुशील कुमार सिहाग
चारणवासी, नोहर, हनुमानगढ़, राजस्थान