मां
माँ की व्यथा जो रहती है सर्वथा । पर नहीं कहती कभी अपनी कथा ।
माँ करती है दुआ की सुखी रहें मेरा लाल । पर लाल भी करता है कुछ इस तरह कमाल । की माँ को ही समझता है जीवक जंजाल ।
कौन क्या है सब भूल जाता है वह । बेटा होने का फर्ज खूब निभाता है वह ।
बचपन में जो था आँखों का तारा । अब लाल ही कर गया उनको बेसहारा ।
लगता है आ रही है, ऐसी प्रथा । फिर भी न कम हो रही है माँ की ममता ।