मां बाप के खून की प्यासी औलादें
बाप बाप के बरसों के प्यार को ,
भुला दिया चार दिन के प्यार ने ।
कैसा है यह नृशंस प्यार ,लानत है,
मां बाप के खून से लगे हाथ रंगने।
दीवानगी की हद देखो कहां ले आई,
के मां बाप ही लगने लगे बेगाने ।
उनकी शिक्षा दीक्षा बेमानी लगे अब,
उनकी अवहेलना लगे वो करने ।
जिन्होंने सारी दुनिया देखी ,
और इसकी फितरत भी देखी ।
अपनी संतान का भला बुरा ,
उनसे जायदा कौन पहचाने !
मां बाप संतान के दुश्मन नहीं ,
वो संतान को भी भली भांति जानते है।
उम्र के इस दौर को भी बखूबी जानते है ।
मगर उनका अनुभव यह नई नस्ल न माने ।
अपरिपक्व ये प्रेम प्रेम नहीं होता ,
बाली उम्र की भावनाओं का उद्वेग होता है।
मात्र क्षणिक आवेग है ये ,
इसके आलावा कुछ नही होता।
इसी उम्र में तो कदम लगते है बहकने ।
प्रेम खो गया तो दुबारा मिल जाएगा,
सच्चा प्रेम करने वाले मां बाप नही मिलेंगे।
उन्होंने किया संतान से निस्वार्थ प्रेम ,
बाकी तो जहां में खुदगर्ज ही मिलेंगे ।
बेहतर होगा इस हकीकत को जरूर पहचाने।
जवानी के जोश में अपने होश खोकर ,
अक्सर जघन्य अपराध कर बैठते हैं।
प्रेमिका और उसके अभिभावक ना माने तो ,
उनकी हत्या तक कर देते हैं।
बल्कि संतान स्वयं यह पाप लगती है करने।
बहुत दुख और पीड़ा महसूस होती है ,
आज की नई पीढ़ी को देखकर ।
भगवान ! इन्हें सद्बुद्धि दो,
आ जाए शीघ्र इंसानियत की राह पर ।