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3 Oct 2021 · 1 min read

मां प्यार से मेरा चेहरा जो पुचकारकर बैठ गई

ये जुस्तजू थककर उम्मीद हार कर बैठ गई
वो खामोश ही रहा जुबां पुकार कर बैठ गई

बहुत कोशिशें कीं मनाने की पर वो न मानी
अब हर ख्वाहिश मेरी दिल मारकर बैठ गई

अपने वादों से मुहं कर गया वो मुहाफ़िज़ मेरा
वो नाव भी किनारों पर मुझे डुबाकर बैठ गई

मैने उसे चांद के जैसा ही तो कहा था ऐ दिल
वो न जाने क्यों अपना मुंह उतारकर बैठ गई

घर लौटा तो बड़ा सूकून मिला बरसों के बाद
मां प्यार से मेरा चेहरा जो पुचकारकर बैठ गई
मारुफ आलम

2 Likes · 326 Views
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