मां तपस्विनी
यह कविता मां के अथक परिश्रम और निस्वार्थ भाव से सेवा करते हुए परिवार को एकजुट रखने का प्रयास करते हुए कठिन तपस्या करती है पर बदले में कुछ भी नही मांगती।
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‘मां तपस्विनी’
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है कहां?
वह घर तपोवन।
सिकुड़ गया,
घर का आंगन
वहीं किसी कोने में
मां तपस्विनी बैठी है।
कहीं बैठी है ?
थकी मांदी ,
नैनन में नींद भरी है,
चूल्हा चौका बुहार;
बैठ छुटकु की ,
बाट निहार।
कब आएगा
तब खायेगा।
दिन प्रतिदिन का किस्सा है ये !
भूखी रह सब सह जाती;
दुख को अपने
कहां बताती ?
सब की प्यारी मां ।
है कहां ?
वो घर तपोवन ।
जहां बैठी है !
मां तपस्विनी ।
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राजेश’ललित’शर्मा
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